Tuesday, March 13, 2007

छतरी : दो शिशु गीत



एक
बारिश से टकराती छतरी,
इसीलिए तो भाती छतरी ।

देख बरसता पानी फौरन,
बिना कहे खुल जाती छतरी ।

फटी पुरानी जैसी भी हो,
काम बहुत है आती छतरी ।

बरसे जब पानी, पापा को –
दफ्तर तक पहुँचाती छतरी ।।

दो

ये जो अपना छाता है जी,
बड़े काम में आता है जी ।
कड़ी धूप हो या हो बारिश,
सबको यही बचाता है जी ।

मिट्टी का दीप

मिट्टी का है दीप, उजाला सबको देता ।
बदले में हमसे-तुमसे,
वो कुछ न लेता ।

हम भी जग की सेवा करके,
दीपक जैसा काम करें ।
सारे जग में नाम करें ।।


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