
एक
बारिश से टकराती छतरी,
इसीलिए तो भाती छतरी ।
देख बरसता पानी फौरन,
बिना कहे खुल जाती छतरी ।
फटी पुरानी जैसी भी हो,
काम बहुत है आती छतरी ।
बरसे जब पानी, पापा को –
दफ्तर तक पहुँचाती छतरी ।।
दो
ये जो अपना छाता है जी,
बड़े काम में आता है जी ।
कड़ी धूप हो या हो बारिश,
सबको यही बचाता है जी ।
मिट्टी का दीप
मिट्टी का है दीप, उजाला सबको देता ।
बदले में हमसे-तुमसे,
वो कुछ न लेता ।
हम भी जग की सेवा करके,
दीपक जैसा काम करें ।
सारे जग में नाम करें ।।
0000000000
No comments:
Post a Comment