जंगल मे दीवाली के दिन,
होते रहे धमाके ।
सभी जानवर मिलजुल करके,
फोड़े खूब पटाखे ।।
लेकिन हाथी दादा सबसे,
अलग-थलग उस रोज ।
उड़ा रहे थे, भालू के घर,
अहा, चटपटा भोज ।
सभी जानवर बोले- “दादा,
बहुत गलत है बात ।
जंगल का अनुशासन तोड़ा,
दिया न सबका साथ ।।”
हाथी दादा मुस्काये तब,
बोले आकर पास ।
मुझे न भाता धुआँ और ये
शोर-शराबा खास ।
ये पैसों की है बर्बादी,
होती नष्ट कमाई ।
इससे अच्छा भरपेट तुम,
खाओ ढेर मिठाई ।
खुद भी खाओ औऱ सभी को,
बाँटो खुशियाँ सारी।
तभी मनेगी दीवाली फिर,
सचमुच प्यारी-प्यारी ।”
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